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किसानों के लिए अधिक लाभदायक होगी

अमित बैजनाथ गर्ग
हाल में केंद्र सरकार ने छह रबी फसलों के न्यूनतम समर्थन मूल्य (रूस्क्क) में वृद्धि की है। यह वृद्धि न्यूनतम 130 रु पये और अधिकतम तीन सौ रुपये प्रति क्विंटल है। गेहूं के एमएसपी में 150 रु पये प्रति क्विंटल की वृद्धि की गई।

रेपसीड और सरसों के दाम में  प्रति क्विंटल तीन सौ रु पये बढ़ाया गया है। मसूर में 275 रुपये की वृद्धि की गई है। सरकारी दर पर रबी फसलों की खरीद-बिक्री का सत्र अप्रैल, 2025 से शुरू होगा।

खास बात यह है कि अधिकतर फसलों की एमएसपी अब लागत के लगभग डेढ़ गुना हो चुकी है, जिसकी मांग किसानों की ओर से लगातार हो रही थी। एमएसपी में 23 फसलों को शामिल किया जा चुका है। एमएसपी बढ़ाने को लेकर किसान आंदोलन करते रहे हैं। सवाल है कि क्या इस बार एमएसपी बढऩे से अगली बार आंदोलन नहीं होगा! एमएसपी किसानों से तय दर पर फसल खरीदने की गारंटी है। इसकी वजह से किसानों को बाजार के उतार-चढ़ाव से सुरक्षा मिलती है।

एमएसपी की शुरु आत 1967 में हुई थी। एमएसपी तय करने के लिए कृषि लागत एवं मूल्य आयोग (सीएसीपी) की रिपोर्ट का इस्तेमाल किया जाता है। सीएसीपी उत्पादन लागत, बाजार के रुझान और मांग-आपूर्ति के हिसाब से एमएसपी तय करता है। एमएसपी की गणना के लिए सीएसीपी खेती की लागत को तीन हिस्सों में बांटता है। इसमें फसल उत्पादन के लिए किसानों के नकद खर्च के साथ-साथ पारिवारिक श्रम का भी हिसाब लगाया जाता है। एमएसपी बढऩे से किसानों को लाभकारी मूल्य मिलता है, और फसल विविधीकरण में मदद मिलती है।

एमएसपी बढ़ाने को लेकर केंद्र सरकार का तर्क है कि इससे किसानों की आय बढ़ेगी। हालांकि किसान नेता सरकार के दावे से सहमत नहीं हैं। उनका कहना है कि किसानों की आय बढ़ाने के लिए सरकार के कई उपाय हो सकते हैं। इसमें एक है मूल्य स्थिरता कोष का गठन यानी जब फसल की बाजार कीमत एमएसपी से नीचे चली जाए तो सरकार इसकी भरपाई करे। किसानों को धान-गेहूं की फसल की बजाय ज्यादा कीमत देने वाली फसल पैदा करने के लिए प्रोत्साहित किया जाना चाहिए। फल, सब्जी, मवेशी, मछली पालन को बढ़ावा दिया जाना चाहिए। उनका कहना है कि कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंंग की आड़ में किसानों को कंपनियों के भरोसे नहीं छोड़ा जाना चाहिए। ये कंपनियां कॉन्ट्रैक्ट तोड़ देती हैं, और किसानों को घाटा उठाना पड़ता है। कर्ज में डूब जाता है और आत्महत्या तक के लिए मजबूर हो जाता है।

कृषि विशेषज्ञों का कहना है कि एमएसपी व्यवस्था का दबदबा इस सेक्टर में इनोवेशन को हतोत्साहित करेगा। किसान सरकारी व्यवस्था पर निर्भर होकर रह जाएंगे और जोखिम लेने से डरेंगे। इसलिए किसानों को चावल-गेहूं की एमएसपी खरीद के चक्र से छुटकारा दिलाने की जरूरत है। एमएसपी की कानूनी गारंटी किसानों का अहित करेगी। उनका दावा है कि स्वामीनाथन आयोग के मुताबिक फसलों के दाम बढ़ेंगे तो खाद्य वस्तुओं के दाम 25 से 30 फीसद बढ़ जाएंगे और सरकार के लिए महंगाई नियंत्रण कठिन हो जाएगा। किसानों का कहना है कि उनकी फसल की पूरी खरीद की जिम्मेदारी सरकार को लेनी होगी। किसान जितनी फसल पैदा करेंगे, उसकी एमएसपी पर पूरी खरीद सरकार और उसकी एजेंसियों को करनी होगी। तभी किसानों का भला होगा और फसलों का विविधीकरण भी पूरा हो जाएगा।

कृषि विशेषज्ञों का कहना है कि खाद्य सुरक्षा आत्मनिर्भरता देश के स्थायित्व और सम्मान का विषय है। एमएसपी खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करने के साथ-साथ खुले बाजार में कीमतों को नियंत्रित करने के लिए हस्तक्षेप तंत्र भी साबित हुआ है। आयात द्वारा खाद्य सुरक्षा कतर, बहरीन आदि जैसे कम आबादी और मजबूत औद्योगिक-आर्थिक आधार वाले देशों के लिए व्यवहार्य मॉडल हो सकता है।

उनका दावा है कि ऑस्ट्रेलिया और अमेरिका प्रतिस्पर्धी कीमतों पर दुनिया के बाकी देशों के लिए गेहूं का उत्पादन और निर्यात कर सकते हैं, लेकिन तब कृषि गतिविधियों से जुड़े भारतीयों सहित दुनिया की आधी आबादी बेरोजगार हो जाएगी। उनका कहना है कि कुछ मामलों में आयात की पक्षपातपूर्ण सरकारी नीति ने देश में तिलहन किसानों और खाद्य तेलों के उद्योगों को हानि पहुंचाई है। ऐसे में कृषि क्षेत्र में ऐसी नीतियों से बचना चाहिए।

कृषि विशेषज्ञ डॉ. वीरेंद्र सिंह लाठर कहते हैं कि एमएसपी की कानूनी गारंटी देश की खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करने के साथ बाजारी मुद्रास्फीति को भी नियंत्रित करेगी जिससे किसानों को बिचौलियों के शोषण से बचाया जा सकेगा। एमएसपी की कानूनी गारंटी तिलहन-दालों सहित सभी कृषि वस्तुओं में आत्मनिर्भरता के माध्यम से खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करेगी जो ज्यादा पानी और संसाधनों की खपत वाली अनाज फसलों के उत्पादन की तुलना में किसानों के लिए अधिक लाभदायक होगी।

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